01-03-90   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

ब्राह्मण जीवन का फाउंडेशन – दिव्य बुध्धि और रूहानी द्रष्टि

अव्यक्त बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले –

आज दिव्य बुद्धि विधाता और रूहानी दृष्टि दाता बापदादा चारों ओर के दिव्य बुद्धि प्राप्त करने वाले बच्चों को देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण बच्चे को यह दोनों वरदान ब्राह्मण जन्म से ही प्राप्त है। दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि - यह बर्थ राइट में सबको मिले हुए है । यह वरदान ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन है । जीवन परिवर्तन वा मरजीवा जन्म, ब्राह्मण-जीवन इन दोनों प्राप्तियोँ को ही कहा जाता है। जीवन और वर्तमान ब्राह्मण-जीवन - दोनों का अंतर इन दो बातों का ही विशेष है । इन दोनों बातों के ऊपर संगममुगी पुरुषार्थ का नम्बर बनना है । इन दो बातों को सदा हर संकल्प में, बोल में, कर्म में जितना जो यूज करता है उतना ही नम्बर आगे लेता है। रूहानी दृष्टि, दृष्टि से वृत्ति, कृति स्वतः ही बदल जाती है । दिव्य बुद्धि द्वारा स्वयं प्रति, सेवा प्रति ब्राह्मण-परिवार के सम्बंध-सम्पर्क प्रति सदा और स्वतः हर बात के लिए निर्णय यथार्थ होता है और जहाँ दिव्य बुद्धि द्वारा यथार्थ निर्णय होता है तो निर्णय के आधार ही स्वयं, सेवा, सप्तन्ध-समर्क यथार्थ शक्तिशाली बन जाना है । मूल बात है ही 'दिव्य दृष्टि और दिव्य बुद्धि ।'

आज बापदा सभी बच्चों की दिव्य बुद्धि को चेक कर रहे थे । सबसे पहली दिव्य बुद्धि की परख - वह सदा बाप को, आपको (स्वयं को) और हर ब्राह्मण-आत्मा को जो है, जैसा है वैसे जानकर उस रूप में बाप से जितना लेना चाहिए वह अधिकार सदा प्राप्त करता रहता है । जो बापने बनाया है, सेवा के निमित्त रखा है, जो बाप ने ब्राह्मण-जीवन की विशेषताएँ वा दिव्यगुण दिये हैं, जैसा निमित्त बनाया है - ऐसे अपने-आपको उस प्रमाण अपने को आगे बढ़ाता है। साथ-साथ हर ब्राह्मण आत्मा के साथ, जो आत्मा जैसी विशेषता वाली है, जिस गुण वाली है, जिस सेवा के योग्य है, जैसे पुरुषार्थ के गति में चलने वाली है - हर एक को, जो है, जैसा है वैसे जान उस आत्मा से, उसी विधि से सम्पर्क में आना वा आगे बढ़ाना - इसको कहते हैं बाप को, आप (स्वयं) को और ब्राह्मण-आत्माओं को जो है, जैसा है वैसे जान आगे बढ़ाना। यह है दिव्य बुद्धि की पहली परख।

दिव्य बुद्धि अर्थात् होलीहँस बुद्धि । हँस अर्थात् स्वच्छता, क्षीर और नीर को या मोती और पत्थर को पहचान मोती ग्रहण करने वाले। जानते है कि यह कंकड़ है, यह मोती है लेकिन कंकड़ को धारण नहीं करते । इसलिए होलीहँस संगमयुगी ज्ञान-स्वरूप विद्या देवी ' 'सरस्वती '' का वाहन है । आप सभी ज्ञान-स्वरूप हो, इसलिए विद्यापति या विद्या देवी हो। यह वाहन दिव्य बुद्धि की निशानी है । आप सभी ब्राह्मण, बुद्धियोग द्वारा तीनों लोकों की सैर करते हो। बुद्धि को भी वाहन कहते है । वह दिव्य बुद्धि का वाहन सभी वाहन से तीव्रगति वाला है । दिव्य बुद्धि को बुद्धिबल भी कहा जाता है। क्योंकि बुद्धिबल द्वारा ही बाप से सर्वशक्तियां कैच कर सकते हो । इसलिए बुद्धिबल कहा जाता है। जैसे साइंस-बल है। साइंस-बल कितनी हद की कमाल दिखाते है! कई बातें जो आज मानव को असम्भव लगती है वह सम्भव कर दिखाते है। लेकिन यह विनाशी बल है। साइंस बुद्धिबल है लेकिन दिव्य बुद्धिबल नहीं है, संसारी बुद्धि है, इसलिए इस संसार के प्रति, प्रकृति के प्रति ही सोच सकते है और कर सकते है। दिव्य बुद्धिबल मास्टर सर्वशक्तिवान बनाता है, परमात्म-पहचान, परमात्म-मिलन, परमात्म-प्राप्ति की अनुभूति कराता है। दिव्य बुद्धि जो चाहो, जैसे चाहो, असंभव को संभव करने वाली है । दिव्य बुद्धि द्वारा हर कर्म में परमात्म-प्योर (पवित्र) टचिंग अनुभव कर हर कर्म में सफलता का अनुभव कर सकते है । दिव्य बुद्धि कोई भी माया के वार को हार खिला सकती है । जहाँ परमात्म-टचिंग है, प्योर- टचिंग है, मिक्सचर नहीं, वहां माया की टचिंग अथवा वार असम्मव है । माया का आना तो छोड़ो लेकिन टच भी नहीं कर सकती । माया दिव्य बुद्धि के आगे सफलता की वरमाला बन जाती है, माया नहीं रहती। जैसे द्वापर के रजोगुणी ऋषि-मुनि आत्माएं शेर को भी अपनी शक्ति से शांत कर देते थे ना। शेर साथी बन जाता, वाहन बन जाता, खिलौना बन जाता - परिवर्तन हो जाता है ना। तो आप सतोप्रधान, मास्टर सर्वशक्तिवान, दिव्य-बुद्धि- वरदानी - उन्हों के आगे माना क्या है, माना दुश्मन से परिवर्तन नहीं हो सकती? दिव्य बुद्धि बल अति श्रेष्ठ बल है । सिर्फ इसको यूज़ करो। जैसा समय उस विधि से यूज़ करो तो सर्व सिद्धियाँ आपकी हथेली है। सिद्धि कोई बड़ी चीज़ नहीं है, सिर्फ दिव्य बुद्धि की सफाई है । जैसे आजकल के जादूगर हाथ की सफाई दिखाने है ना । वह दिव्य बुद्धि की सफाई सर्व सिद्धियोँ को हथेली में कर देती है । आप सभी ब्राह्मण आत्माओं ने सर्व सिद्धियाँ प्राप्त की है लेकिन दिव्य सिद्धियाँ साधारण नहीं। तब आपकी मूर्तिके द्रारा आज तक भी भक्त सिद्धि प्राप्त करने के लिए जाते हैं । जब सिद्धि-स्वरूप बने हैं तब तो भक्त आपसे माँगने आते हैं । तो समझा दिव्य बुद्धि की क्या कमाल है! स्पष्ट हुई ना दिव्य बुद्धि की कमाल। लेकिन आज क्या देखा? क्या देखा होगा ' टीचर्स सुनाओ।

टीचर्स तो बाप समान मास्टर शिक्षक हो गई ना । टीचर अर्थात् हर संकल्प, बोल और हर सेकण्ड सेवा में उपस्थित - ऐसे सेवाधारी को ही बापदादा टीचर कहते हैं । हर समय तो वाणी द्वारा सेवा नहीं कर सकते हो। थक जायेंगे ना। तेकिन अपने फीचर्स द्वारा हर समय सेवा कर सकते हो। इसमें थकावट की बात नहीं है । यह तो कर सकते हैं ना, टीचर्स बोलने की सेवा तो यथाशक्ति समय प्रमाण ही करेंगे लेकिन फ़रिश्ता फ्यूचरके फीचर्स हों । संगमयुग का फ्यूचर फ़रिश्ता है, वह फीचर्स में दिखाई दे तो कितनी अच्छी सेवा होगी? जब जड-चित्र फीचर्स द्वारा अंतिम जन्म तक भी सेवा कर रहे हैं, तो आप चैतन्य श्रेष्ठ आत्माएं अपने फीचर्स द्रारा सेवा सहज कर सकते हो। आपके फीचर्स में सदा सुख की, शान्ति की, खुशी की झलक हो । कैसी भी दुखी, अशांत आत्मा, परेशान आत्मा आपके फीचर्स द्वारा अपना श्रेष्ठ फ्यूचर बना सकती है । ऐसा अनुभव है ना। अमृतवेले अपने फीचर्स को चेक करो। जैसे शरीर के फीचर्स को चेक करने हो ना, वैसे फ़रिश्ता फीचर्स में खुशी का, शान्ति का, सुख का शृंगार ठीक है - यह चेक करो तो स्वत: और सहज सेवा होती रहेगी। सहज लगता है ना टीचर्स को ? यह तो १२ घण्टा ही सेवा कर सकते हो । यह वाणी की सेवा तो दो-चार घण्टा ही करेंगे। प्लेनिंग का काम, भाषण का काम करेंगे तो थक जायेंगे। इसमें तो थकने की बात ही नहीं। नेचुरल है ना। वैसे अनुभवी सभी हो लेकिन... बापदादा ने देखा फ़ोरिन में कुत्ते और बिल्ली बहुत पालते हैं। ऐसे खिलौने भी यही लाते हैं। तो अनुभव बहुत अच्छा करते हो लेकिन कभी कुत्ता आ जाता, कभी कोई बिल्ली आ जाती है। उसको निकालने में टाइम लगा देते हो। लेकिन आज सुनाया ना कि माया आपकी सफलता की माला बन जायेंगी। सभी निमित्त सेवाधारी के गले में माला पडी हुई है । सफलता की माला है वा कभी-कभी गले में माला होते भी दिखाई नहीं देती है? बाहर ढूँढते रहते कि सफलता मिले। जैसे रानी की कहानी सुनाते हैं ना - गले में हार होते हुए भी बाहर ढूँढती रही। ऐसे तो नहीं करते हो ना । सफलता हर ब्राह्मण-आत्मा का अधिकार है। सभी टीचर्स सफलतामूर्त हो ना, कि पुरुषार्थीमूर्त, मेहनतमूर्त हो? पुरुषार्थ भी सहज पुरुषार्थ, मेहनत वाला नहीं। यथार्थ पुरुषार्थ की परिभाषा ही है कि नेचुरल अटेन्शन। कई कहते हैं - अटेन्शन रखना है ना। लेकिन अटेन्शन, टेन्शन में बदल जाती है, यह पता नहीं पड़ता। नेचुरल अटेन्शन अर्थात् यथार्थ पुरुषार्थी।

 

टीचर्स से बापदादा का प्यार है, इसलिए मेहनत करने नहीं देते है । दिल का प्यार तो यही होता है ना। अच्छा, फिर दूसरी बार सुनायेंगे कि और क्या-क्या देखा! थोड़ा-थोड़ा सुनायेंगे। सबके अंदर अपना चित्र तो आ रहा है ।

देश-विदेश में सेवा की धूमधाम अच्छी है । भारत की कोन्फेरेंस भी बहुत अच्छी सफल रही। सफलता की निशानी है - सफलता की खुशबू पर आने वाली आत्माएं अपने उमंग-उत्साह से संख्या में बढ़ती जाती है। अच्छे की निशानी यह है कि सबके अंदर देखने-सुनने-पाने की इच्छा बढ़ रही है। यह है अच्छे की निशानी। तो यह नहीं सोचो - संख्या कम होगी । अगर अच्छा करते हो तो इच्छा बढ़ेगी, संख्या तो बढ़ेगी। चाहे फ़ोरिन की रिट्रीट में, चाहे कोन्फेरेंस में - दोनों की रिजल्ट दिन-प्रतिदिन अच्छे-ते-अच्छी दिखाई दे रही है। सबसे अच्छी रिजल्ट यह है कि पहले जो फ़ोरिन में कहते थे कि ब्रह्माकुमारियोँ के नाम से कोई आयेगा नहीं । ' 'अभी तो डायरेक्ट ब्रह्माकुमारियोँ के आश्रम में रिट्रीट करने जा रहे हैं, राजयोग के लिए जा रहे हैं '' यह समझते हैं । तो यह है परदे के बाहर आये, घूँघट खोला है । मधुबन निवासी वा सेवाधारी सभी ने चाहे भारत के अनेक स्थानो से आकर सेवा की, मधुबन निवासी वा चारों ओर के सेवाधारियोँ ने स्नेह से, बातों को न देख, आराम को न देख, अच्छी अथक सेवा की। इसलिए बापदादा चारों ओर की अथक सेवा की सफलता को प्राप्त करने वाली विशेष बच्चों को सेवा की मुबारक, दिल की मुबारक दे रहे हैं। आवाज़ गूँजती हुई चारों ओर फैल रही है । अच्छा –

सर्व दिव्य बुद्धि रूहानी वरदानी आत्माएं, सदा बुद्धि-बल को समय प्रमाण, कार्य प्रमाण यूज करने वाली ज्ञान-स्वरूप आत्माओं को, सदा अपने फरिश्ते फीचर्स द्वारा अखण्ड सेवा करने वाले स्वत: सहज पुरुषार्थी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

डबल विदेशी भाई-बहनों के अलग-अलग ग्रुप से 

अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

१. सभी अपने श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित रहते हो? चाहे और कितनी भी आये लेकिन आपका भाग्य तो सदा है ही। आप उन्हों को आगे करके भी आगे रहेंगे। क्योंकि आगे करने वाले स्वत: ही आगे रहते है । औरों को आगे रखने से आपका पुण्य जमा हो जाता है। तो आगे बढ़ गये ना! सदा यह लक्ष्य हर कदम में हो कि आगे बढ़ना और बढ़ाना है। जैसे बाप ने बच्चों को आगे किया, स्वयं बैकबोन रहा लेकिन आगे बच्चों को किया। तो फालो फादर करने वाले हो ना! जितना यहाँ बाप को फालो करते हो उतना ही नम्बरवार विश्व के राज्य तख्त पर भी नम्बरवार फालो करेंगे। तख्त लेना है या नख्तनशीन को देखना है ' (बैठना है) सतयुग में तो आठ बेठेंगे, फिर क्या करेंगे? थोड़ा समय टेस्ट करेंगे । जब विश्व-महाराजन अपने महल में जायेंगा तो आप बैठकर देखेंगे । फिर क्या करेंगे? जितना इस समय सदा बाप के साथ खाते-पीते रहते, खेलते, पढाई करते उतना ही वहाँ साथ रहते । तो ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है ना! बापदादा को भी खुशी है कि ब्रह्मा बाप के लाड़ले ब्रह्माकुमार और कुमारियॉ है! ब्रह्मा बाप के साथ अनेक जन्म समीप रहेंगे, साथ रहेंगे। २१ जन्म की तो गारण्टी है - भिन्न नाम-रूप से ब्रह्मा की आत्मा के साथ सम्बन्ध में रहेंगे । यह दिल मैं आता है या सुना है इसलिए कहते हो है फीलिंग आती है? जितना समीपताकी स्मृति रहती है उतना नेचुरल नशा, निश्चय स्वत: रहेगा। दिल से सदा यह अनुभव करो कि अनेक बार बाप के साथी बने है, अभी भी हैं और अनेक बार बनते रहेंगे । बच्चों का अविनाशी पुरुषार्थ देख बापदादा को विशेष खुशी होती है । सदैव मॉ-बाप और परिवार का छोटे बच्चों के ऊपर विशेष प्यार होता है और सभी का प्यार ही उन्हों को बढ़ाता है । बापदादा सदा देखते रहते हैं कि कौन-सा बच्चा कितना आगे बढ़ रहा है और कितनी सेवा में वृद्धि कर रहा है! तो सदा यही वरदान याद रखना कि सदा निरंतर और नेचुरल पुरुषार्थ हो। इस वर्ष इसी वरदान को स्मृति में रख स्मृतिस्वरूप बनना। हर एक समझे कि यह वरदान मेरा वरदान है! अच्छा!

 

२ सदा अपने दिल में बाप के गुणों  के गीत गाते रहते हो ना! सभी को यह गीत गाना आता है? ब्राह्मण बने और यह गीत ऑटोमैटिक बजता रहता है, यह कितना मीठा गीत है! खुशी का गीत है, दुःख या वियोग का गीत नहीं है । योगयुक्त होने का यह गीत है। योगी आत्मा ही वह गीत गा सकती है, दुखी आत्मा नहीं गा सकती । गीत है ही क्या - 'वाह बाबा वाह और वाह मैं श्रेष्ठ आत्मा वाह, वाह ड्रामा वाह। ' तो 'वाह-वाह' का गीत है, 'हाय-हाय' का नहीं। पहले थे 'हाय-हाय' के गीत, अभी है 'वाह-वाह' के गीत। कुछ भी हो जाए लेकिन आपके दिल से वाह' निकलेगा 'हाय' नहीं। दुनिया जिस बात को 'हाय-हाय' कहनी, आपके लिए वही बात 'वाह-वाह ' है । तो सभी यह गीत गाने हो ना! यह दिल के गीत है, मुख के नहीं। कोई भी बात होती है तो यह ज्ञान है कि नथिग न्यू, हर सीन अनेक बार रिपीट की है। नथिग न्यू की स्मृति से कभी भी हलचल में नहीं आ सकते, सदा ही अचल अटल रहेंगे । कोई नई बात होती है तो आश्वर्य से निकलता है - यह क्या, ऐसा होता है क्या? लेकिन नथिग न्यू है तो 'क्या' और क्यों' का क्वेक्वेश्चन नहीं, फुलस्टॉप आ जाता है । तो फुलस्टॉप वाले हो या स्वेसुन वाले हो या केखन मार्क वाले हो? सबसे सहज बिंदी होती है । बच्चों को भी हाथ में पेन्सिल देंगे तो पहले बिंदी लगायेगा। तो फुलस्टॉप बिंदी है । क्वेश्चन मार्क मुश्किल होता है। जो फुलस्टॉप देना जानते है वह फुल पास होते हैं। तो फुल पास होने वाले हो या धक्के से होने वाले हो? होना है तो फुल । धक्के से पास होने वाले को पास नहीं कहेंगे । अच्छा! कहाँ भी रहते आप सबका मन कहाँ रहता है? सेवा के निमित्त पत्र अलग- अलग स्थानों पर रहते हो लेकिन मन तो मधुबन में रहता है ना। मधुबन अर्थात् मधुरता वाले हो ना। या कभी बच्चों के ऊपर क्रोध करते हो? पाण्डव कभी दफ्तर में क्रोध करते हो? काम-काज में क्रोध करते हो या मधुर रहते हो माताएं कभी किसीके ऊपर क्रोध तो नहीं करती - चाहे बच्चों पर चाहे आपस में बड़ो से क्रोध तो नहीं करते ' माताओं को क्रोध आता है? (बच्चों पर कभी-कभी आता है) तो उनको बच्चे नहीं समझो । बच्चे माना ही बेसमझ। बड़े तो नहीं है ना, बच्चे हैं। बच्चे कहने से कभी नहीं बदलते। कहने से सिर्फ दबते है, बदलते नहीं। आप आज उनको कहेंगे और कल वे दूसरों को कहेंगे। तो सिखाते हो। परिवर्तन नहीं लाते हो लेकिन सिखाते हो। कहाँ तक दबेगें । एक घण्टा दबकर बैठैगे फिर वैसे-के-वैसे। इसलिए कैसा भी बच्चा हो, अन्जान हो, चाहे बड़ा भी है लेकिन ज्ञान से उस समय अन्जान है ना! अन्जान के ऊपर कभी क्रोध नहीं किया जाता, रहम किया जाता है। तो फालो फाधर करो। बापदादा कभी गुस्सा करते हैं क्या? आप लोग गलतियाँ करते हो, बार-बार भूल करते हो, विस्मृति में तो आते हो ना! तो बाप गुस्सा करता है क्या ? तो फिर आप क्यों करते हो? बाप के आगे तो आप सब बडे-बड़े भी बच्चे हैं ना! जैसे बाप रहम का सागर है ऐसे आप मास्टर हो। सदा शुभ-भावना, शुभ-कामना से परिवर्तन करो । बाप ने परिवर्तन किया - शुभ-भावना रखी कि यह श्रेष्ठ आत्माएं है, ब्राह्मण-आत्माएं है । तो परिवर्तन हो गया ना । तो फालो फाधर करो। पहले अपने को देखो मैं कितनी भूल करती हूँ फिर बाप क्या करता है उस जगह पर ठहर कर देखो, तो कभी क्रोध नहीं आयेगा। समझा । शुभ-भावना, शुभ-कामना की दृष्टि से स्वयं भी संतुष्ट रहेंगे। अनुभव है ना! संतुष्ट रहना ही संतुष्ट करना है । कुछ भी हो जाए, कितना भी कोई हिलाने की कोशिश करे लेकिन संतुष्ट रहना है और करना है - यह सदा स्मृति रहे । अच्छा तो यही लगता है ना! संतुष्ट रहनेवाला सदा मनोरंजन में रहेगा। तो यह वरदान याद रखना। ब्राह्मण अर्थात् संतुष्ट । असंतुष्टता ब्राह्मण-जीवन नहीं है । अच्छा!

 

३. सभी अमूल्य रत्न हो। कितने अमूल्य हो? इस दुनिया में ऐसा शब्द नहीं जो आपको कहे! बहुत श्रेष्ठ रत्न हो, इसलिए द्वापर से जब आपके मंदिर बनते है तो उसमे रत्न जड़ते है, जड-चित्रों को भी रत्नों से सजाते है। तो जब जड़-चित्र इतने अमूल्य बने तो चैतन्य में कितने श्रेष्ठ हो, अमूल्य हो। और अपने राज्य में जब होंगे तो यह रत्न क्या होंगे! जैसे यहाँ पत्थर सजाते हो वैसे वही रत्न-जड़ित महल होंगे। याद है अपने राज्य में क्या-क्या किया था? अनगिनत बार की बात याद नहीं है! अपने वर्तमान समय को ही देखो तो यह जीवन कौड़ी से क्या बन गई है? हीरे तुल्य जीवन है ना! यह हीरे-रत्न आपके लिए अनगिनत हो जायेंगे । सदा अपने वर्तमान श्रेष्ठ जीवन के आधार पर भविष्य सोचो कि कर्म का फल क्या मिलेगा, कितना शक्तिशाली कर्म रूपी बीज डाल रहे हो। तो फल भी अच्छा मिलेगा ना! इससे अच्छा फल और किसी को मिल नहीं सकता। यह नशा रहता है ना! अच्छा! 

सभी बिजी रहते हो ना । जो बिजी होता है उसके पास माया नहीं आती। क्योंकि आपके पास उसे रिसीव करने का टाइम ही नहीं है। तो इतने बिजी रहते हो या कभी- कभी रिसीव कर लेते हो? ब्राह्मण बने ही क्यो? बिजी रहते के लिए ना। बापदादा हँसी में कहते है कि बिजी रहने वाले ही बडे-ते-बडे बिजनिसमैन हैं। सारे दिन में कितना बड़ा बिजनेस करते हो! जानते हो हिसाब? हिसाब रखना आता है? हर कदमो में पढ़ाई की कमाई है। कदम मैं पदम् - सारे कल्प में ऐसा बिजनेस कोई नहीं कर सकता। तो जितना जमा होता है उस जमा की खुशी होती है । सबसे ज्यादा खुशी किसको रहती है? नशे से कहो - 'हम नहीं खुश होंगे तो कौन होगा!' यह नशा भी हो किन्तु निर्माण। जैसे अच्छे वृक्ष की निशानी है - फल वाला होगा लेकिन झुका होगा। ऐसा नशा है? तो दोनों साथ-साथ हो । आप सबकी नेचुरल जीवन ही यह हो गई है - किसी को भी देखेंगे तो उसी स्मृति से देखेंगे कि यह एक ही परिवार की आत्माएं है । इसलिए नुकसान वाला नशा नहीं है । हर आत्मा के प्रति दिल का प्यार स्वत: ही इमर्ज होता हें । कभी किसी के प्रति घृणा नहीं आ सकती । कभी कोई गाली देवे तो भी घृणा नहीं आ सकती, क्वेश्चन नहीं उठ सकता। जहाँ क्वेश्चन मार्क होगा वही हलचल जरूर होगी। फुलस्टॉप लगाने वाले फुल पास होते है। फुलस्टॉप वही लगा सकते है - जिनके पास शक्तियो का फुलस्टॉक हो। अच्छा -